संवाददाता राहुल मिश्रा
भारत-नेपाल सीमा पर तस्करी का मुद्दा एक गंभीर समस्या बन चुका है, और खासकर दिन के उजाले में यह गतिविधियाँ इतनी बेखौफ हो गई हैं कि सुरक्षा एजेंसियां भी इन्हें रोकने में नाकाम हो रही हैं। खासकर जब हम बात करें सीमा चौकियों की, तो यह स्थिति और भी चिंताजनक बन जाती है। चौकी के सामने से तस्करी के लिए इस्तेमाल होने वाले पिकअप वाहन धड़ल्ले से गुजरते हैं और सुरक्षा एजेंसियां मूकदर्शक बनी रहती हैं।
भारत और नेपाल के बीच करीब 1,751 किलोमीटर की सीमा है, जो कई जगहों पर खुली हुई है। इसका मतलब यह है कि यहां की सीमा सुरक्षा बेहद कमजोर है। हालाँकि, दोनों देशों के बीच व्यापारिक और सांस्कृतिक रिश्ते मजबूती से जुड़े हुए हैं, लेकिन तस्करी के चलते इन रिश्तों को नुकसान भी पहुँच रहा है। तस्कर दिन-दहाड़े, बिना किसी डर के सीमा पार कर सामानों की तस्करी करते हैं, और यह न केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि इससे दोनों देशों की सुरक्षा पर भी खतरा मंडरा रहा है।
चौकी के सामने से तस्करी की घटनाओं को लेकर कई बार सवाल उठ चुके हैं, लेकिन सीमा पर तैनात सुरक्षा बलों की नाकामी की वजह से यह घटनाएँ लगातार बढ़ती जा रही हैं। पिकअप वाहन, जो सामान्य रूप से व्यापारिक सामान लाने-ले जाने के लिए होते हैं, तस्करी के लिए भी प्रयोग किए जा रहे हैं। इन वाहनों में चोरी-छिपे भारी मात्रा में सामान जैसे शराब, नकली मुद्रा, तंबाकू, सोना, गेंहू, चावल, मक्का, कपड़ा, इत्यादि और अन्य प्रतिबंधित वस्त्रों की तस्करी की जाती है। पिकअप वाहन, चौकियों पर सुरक्षा कर्मियों को देखकर धीमे नहीं होते, बल्कि सुरक्षा बलों की अनदेखी करते हुए तेजी से सीमा पार करते हैं। लेकिन चौकी प्रभारी के तरफ से कोई कार्यवाही नही की जाती यह तो सवाल खड़ा होता है पुलिस प्रशासन के ऊपर यह स्थिति इस बात का प्रमाण है कि सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था बेहद कमजोर हो चुकी है।
सुरक्षा एजेंसियों की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। चौकी पर तैनात सुरक्षाकर्मी जानबूझकर या तो लापरवाह होते हैं या फिर उन्हें तस्करों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए दबाव नहीं डाला जाता। कई बार स्थानीय अधिकारियों ने भी यह स्वीकार किया है कि तस्करी पर रोक लगाने में पर्याप्त संसाधनों और निगरानी का अभाव है। हालाँकि, सीमा सुरक्षा बलों द्वारा पिकअप वाहनों की जांच की जाती है, लेकिन इस जांच में अक्सर असफलता ही हाथ लगती है, जिससे तस्करी की गतिविधियाँ बेखौफ रूप से चलती रहती हैं।
इसके अलावा, सीमा पार व्यापार के लिए कई छोटे रास्ते भी मौजूद हैं, जिन्हें तस्कर अक्सर अपनी तस्करी गतिविधियों के लिए इस्तेमाल करते हैं। इन छोटे रास्तों की पहचान स्थानीय तस्करों को होती है, और इनका इस्तेमाल वे दिन के उजाले में बड़ी आसानी से करते हैं। यह रास्ते सुरक्षाकर्मियों की निगरानी से बाहर होते हैं, जिससे तस्करी की घटनाएँ और भी बढ़ जाती हैं।
सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा और तस्करी रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। चौकियों पर और सीमा पर तैनात सुरक्षाकर्मियों की सतर्कता को बढ़ाना होगा, साथ ही अवैध व्यापार पर कड़ी नजर रखने के लिए नई तकनीकों का उपयोग किया जाना चाहिए। केवल इस तरह से तस्करी की घटनाओं को रोका जा सकता है और सीमा सुरक्षा को मजबूत किया जा सकता है।