
रिपोर्ट न्यूज़ डेस्क
आपको बताते चलें कि महराजगंज जिले के जिला पंचायत राज अधिकारी श्रेया मिश्रा जो जिले पर जब नई तैनाती हुई तो खूब चर्चे में बनी रही मानो तो महराजगंज के लिए कोई फरिस्ता आया जो हर शिकायती पटल को गौर कर के जांच करवा रही थी लेकिन जैसे जैसे महराजगंज का माहौल मिलने लगा मैडम को वैसे वैसे ही मैडम की कार्यो में गति धीमी हो गई मानो तो खरगोश से कछुए की रफ्तार जाने क्या था मामला मामला यह है कि अगर कोई फरियादी मैडम के पास अपनी फरियाद लेकर जाता है तो मैडम ऐसे फरियादी को डील करती है कि फरियादी वही निराश होकर चला आता है और मैडम अपने अधिकारियों को बचाने के लिए 24/7 लगी रहती है क्योंकि कुछ अधिकारी मैडम के लोकप्रिय बन बैठे हैं अगर जिला प्रशासन ही ऐसे काम करेगा तो आम जनता इन अधिकारियों के दुष्प्रभाव से परेशान हो जाएगी जहाँ योगी आदित्यनाथ की सरकार अधिकारियों को बार बार निर्देश दे रही है कि जनता अगर कोई शिकायत लेकर जाती है तो तुरंत उसकी फरियाद सुन कर सम्बंधित विभाग को हस्तांतरित किया जाए ताकि जनता को कोई दिक्कत न हो लेकिन यहाँ तो मुख्यमंत्री का आदेश भी अधिकारी एक कान से सुन रहे हैं और दूसरे कान से निकाल कर कानो में रुई डाल दे रहे हैं सरकार तो उनको टाइम टू टाइम वेतन मुहैया करा ही दे रही है काम हो या न हो शिकायतकर्ता के भले ही कार्यालय के चक्कर काट कर चप्पल घिस जाए जॉच नही होने वाली जॉच उन्ही अधिकारियों की जाती है जो सीधा साधा हो वो भी जॉच बस कोटा पूरा करने के लिए ताकि इनके विभाग की बदनामी न हो और अधिकारियों की मनमानी चलती रहे और सरकार का पैसा लूट कर चढ़ावा चढ़ता जाए सरकारी पैसा सरकारी काम मे आधा तीसरी काम पूरा हो या न हो लेकिन चढ़वा चढ़ने में कमी न हो वही जब भ्रष्टाचार की शिकायत लेकर शिकायतकर्ता कार्यालय पहुंचता है तो वहां से उसको निराश कर दिया जाता है
जिला पंचायत राज अधिकारी (डीपीआरओ) कार्यालय में आने वाले शिकायतकर्ताओं को अगर उचित तरीके से सुनवाई और समाधान नहीं मिल रहा है, तो यह स्थिति न केवल प्रशासन की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है, बल्कि यह समाज में और सरकार के ऊपर विश्वास की कमी का कारण भी बन सकती है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिकायतकर्ताओं को उनकी समस्याओं का समाधान सही तरीके से और समयबद्ध रूप से मिले।
शिकायतकर्ताओं का निराश होकर वापस लौटना यह दर्शाता है कि डीपीआरओ कार्यालय में शिकायतों की सुनवाई में गंभीरता की कमी है और शायद शिकायतों को सुलझाने के प्रति भी उदासीनता का रवैया अपनाया जा रहा है। यह स्थिति न केवल प्रशासनिक निष्क्रियता को दर्शाती है, बल्कि यह शासन की छवि को भी नुकसान पहुंचाती है।
डीपीआरओ का कर्तव्य और जिम्मेदारी
जिला पंचायत राज अधिकारी का मुख्य कार्य पंचायतों के कार्यों को सुचारू रूप से चलाना, योजनाओं का संचालन करना और आम नागरिकों की समस्याओं का समाधान करना है। डीपीआरओ कार्यालय में आने वाले शिकायतकर्ताओं के मामले में सबसे पहले यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी शिकायतों को गंभीरता से लिया जाए और उनका समाधान शीघ्र हो। नियमानुसार, कोई भी शिकायतकर्ता अगर डीपीआरओ कार्यालय में आता है, तो उसकी शिकायत सुनी जानी चाहिए और उसे तत्काल समाधान के लिए कार्रवाई की जानी चाहिए।
लेकिन जब शिकायतकर्ताओं को लीपा-पोती करके वापस भेजा जाता है, तो यह न केवल उनके अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह एक तरह से भ्रष्टाचार और प्रणालीगत दोष को भी बढ़ावा देता है। शिकायतकर्ताओं की अनदेखी करना, उन्हें निराश करके वापस भेजना, एक गंभीर प्रशासनिक चूक का उदाहरण है। ऐसे मामलों में यह जरूरी है कि उच्च अधिकारियों को इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए और दोषी अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए।
शिकायतकर्ताओं का निराश होना
जब कोई नागरिक अपनी समस्या लेकर डीपीआरओ कार्यालय आता है, तो वह उम्मीद करता है कि उसकी शिकायत सुनकर समाधान किया जाएगा। लेकिन यदि उसे उचित जवाब नहीं मिलता और उसे सिर्फ बहाने या जटिल प्रक्रियाओं से निराश किया जाता है, तो यह उसके विश्वास को टूटने का कारण बनता है। इससे केवल शिकायतकर्ता ही नहीं, बल्कि समाज का पूरा तबका प्रभावित होता है, जो प्रशासन की निष्क्रियता से असंतुष्ट होता है।
निराश शिकायतकर्ता न केवल अपने व्यक्तिगत मामले में हताश होता है, बल्कि वह समग्र प्रशासनिक व्यवस्था पर भी सवाल उठाता है। इस तरह की घटनाएं सरकार की कार्यप्रणाली और विश्वास को कमजोर करती हैं। जब लोगों को लगता है कि उनकी आवाज़ नहीं सुनी जा रही है, तो वे और अधिक असंतुष्ट और दूर हो जाते हैं, जो कि समाज में असंतोष और अशांति का कारण बन सकता है।
लीपा-पोती की समस्या तो तेजी से है
जिला पंचायत राज अधिकारी के कार्यालय में शिकायतकर्ताओं की समस्या का समाधान करने की बजाय उन्हें टालमटोल किया जाना और लीपा-पोती के तौर पर वापस भेजना, यह एक गंभीर प्रशासनिक त्रुटि है। जब शिकायतकर्ताओं को किसी भी प्रकार की संतोषजनक जवाब या समाधान नहीं मिलता, तो वे अधिक असंतुष्ट और परेशान होते हैं। इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार का भी योगदान हो सकता है और इसका प्रभाव सीधे सरकार तक जाता है, जहां अधिकारी शिकायतों को दबाने के लिए शिकायतकर्ताओं को नजरअंदाज करते हैं वही लीपा-पोती का मतलब है किसी समस्या का समाधान न करके उसे टाल देना, और इसे किसी अन्य रूप में प्रस्तुत करना, ताकि यह प्रतीत हो कि कार्यवाही हो रही है, जबकि असल में कुछ नहीं हो रहा। यह न केवल अधिकारियों की कायरता का परिचायक है, बल्कि यह प्रशासनिक प्रणाली की विफलता को भी दर्शाता है। जब शिकायतकर्ता को इस तरह से नकारा जाता है, तो यह उसे सरकार और प्रशासन के प्रति अविश्वास की ओर धकेलता है।
:-कार्यालय में प्रशासनिक सुधार की आवश्यकता
यह जरूरी है कि जिला पंचायत राज अधिकारी (डीपीआरओ) कार्यालय में कार्यप्रणाली को दुरुस्त किया जाए। प्रशासनिक सुधारों के तहत यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि किसी भी शिकायत को गंभीरता से लिया जाए, उसे शीघ्र सुलझाया जाए और शिकायतकर्ता को हर स्थिति में संतोषजनक उत्तर मिले। इसके लिए कर्मचारियों को उचित प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है ताकि वे शिकायतों को उचित तरीके से हैंडल कर सकें और उनका समाधान निकाल सकें।
साथ ही, डीपीआरओ के कार्यालयों में एक पारदर्शिता का तंत्र भी स्थापित किया जाना चाहिए, ताकि शिकायतकर्ताओं को पता चले कि उनकी शिकायत पर कितनी कार्रवाई हो रही है और उनका मामला किस स्थिति में है। इससे न केवल शिकायतकर्ताओं का विश्वास बढ़ेगा, बल्कि सरकार व प्रशासन की छवि भी सुधरेगी।
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